गर्भ में पल रहा शिशु होने वाले माता पिता के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता। माँ जब से शिशु को गर्भ में धारण करती है, उस क्षण से ही वह न जाने अपने शिशु के लिए कितने सपने देखने लगती है। उसके मन में अपने होने वाले शिशु की जैसे एक छवि सी बन जाती है। माँ ही नहीं पिता और घर के अन्य सदस्यों की भी होने वाले शिशु के लिए में बहुत सारी अपेक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं बन जाती है। हर कोई चाहता है कि उसके परिवार में जन्म लेने वाला शिशु गुणी, संस्कारी और अच्छे आचरण वाला हो। पर क्या आप जानतें हैं कि आप जैसा शिशु चाहते हैं वैसे ही शिशु को जन्म दे सकते हैं? जी हाँ, ये कोई भ्रम नहीं बल्कि सच है। और इस सच का नाम है गर्भ संस्कार | गर्भ संस्कार की मदद से आप अपने होने वाले शिशु में मनोवांछित गुणों का संवर्धन कर सकती हैं | बात जब गर्भ संस्कार की होती है तो इसका एक अभिन्न अंग की भी चर्चा करना महत्वपूर्ण है | और वह है ‘गर्भ संवाद’। गर्भ संवाद का अर्थ होता है, गर्भस्थ शिशु से संवाद। यानी की अपने होने वाले शिशु से बातचीत करना। इस प्रकिरिया में माँ अपने होने वाले शिशु से बातचीत करती है जिसके परिणाम स्वरूप शिशु और माँ का भावनात्मक सम्बंध सुदृद होते हैं साथ ही होने वाले शिशु में अनोवांछित गुणों का रोपण भी शुरू होता है। गर्भ संवाद सत्र सुनने के लिए आप कृष्णा कमिंग गर्भ संस्कार एप डाउनलोड कर सकती हैं.
पौराणिक कथाओं की बात करें तो आप सभी ने सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की कथा तो पढ़ी ही होगी। इस कथा से हमें पता चलता है कि अभिमन्यु ने गर्भ से ही चक्रव्यूह को भेदना सीख लिया था। ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि जब अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ में थे तब अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह के बारे में बताया था और अभिमन्यु गर्भ में से ही ये सब कुछ सुन रहे थे। आध्यात्मिक और पौराणिक कथाओं के अलावा आज विज्ञान भी कहता है कि शिशु के 80% दिमाग का विकास गर्भ में ही हो जाता है। देश व विदेश की कई यूनिवर्सिटीस ने भी इस बात को भी प्रमाणित कर दिया गया है कि गर्भ धारण के कुछ समय बाद से ही शिशु अपने आस-पास होने वाली आवाज़ों को सुन कर कई चीज़ों को सीख सकतें है। जब शिशु गर्भ से ही इतना कुछ सीख और समझ सकता है तो ये बेहद ज़रूरी हो जाता है कि हम हर सम्भव प्रकार से उस तक श्रेष्ठ संस्कार पहुचाएँ |
यह भी माना जाता है कि गर्भ में पल रहा शिशु अपने पिछले जन्म के जीवन को छोड़कर आया होता है। और क्योंकि अभी तक उसे नया शरीर नहीं मिला होता है इसलिए वो अभी तक अपने आत्म स्वरुप में होता है। और इस स्वरुप में उसकी ग्रहणशीलता बहुत ज़्यादा होती है। इस समय गर्भस्थ शिशु को जो कुछ भी सिखाया जाता है वो उसे 80 प्रतिशत से ज़्यादा ग्रहण कर सकता है।
एक वैज्ञानिक मत इस बात की भी पुष्टि करता है कि जब होने वाली माँ अपने होने वाले शिशु से भावनात्मक संवाद स्थापित करती हैं तो उनके शरीर में ओक्सीटोसिन नामक हॉर्मोन का स्त्राव होता है जिससे उन्हें ख़ुशी का व सकारतमकता का अनुभव होता है जो गर्भस्थ शिशु में भी परिलक्षित होता है | यही प्रसन्नता व सकारतमकता गर्भावस्था व गर्भस्थ शिशु के स्वस्थ विकास में अत्यंत सहायक होती है |
गर्भ संवाद के लिए दिन के निम्नलिखित तीन समय सबसे अच्छे माने गए हैं -
प्रातः काल: इस समय हमारा मस्तिष्क, शरीर और मन पूरी तरह से शांत होता है। इस समय अगर ध्यान करते हुए माँ अपने शिशु के साथ गर्भ संवाद करती है तो वो बहुत ही ज़्यादा प्रभावशाली होता है।
दोपहर: ये दिन का समय होता है। इस समय भी माँ आने शिशु के साथ गर्भ संवाद कर सकती है। इस समय अगर संगीत के साथ गर्भ संवाद किया जाता है तो वो बहुत ही प्रभावशाली होता है। कृष्णा कमिंग गर्भ संस्कार एप पर मौजूद गर्भ संस्कार म्यूजिक को भी माँ अपने गर्भ संवाद के दौरान सुन सकती है।
रात्रि: रात्रि में सोने से पूर्व किया गया गर्भ संवाद शिशु के लिए भी अत्यंत लाभदायक होता है।
गर्भ में पल रहे शिशु से संवाद करना माँ और शिशु दोनों के लिए ही एक बहुत ही लाभदायक प्रक्रिया है। इससे शिशु के सम्पूर्ण विकास को जन्म से पूर्व ही शुरू करके एक संस्कारी शिशु को प्राप्त किया जा सकता है। सभी गर्भवती महिलाओं को गर्भ संवाद ज़रूर करना चाहिए।